Saturday, February 16, 2019

बाज़ारवाद आम जन-जीवन पर हावी


            वर्तमान समय में देखें तो बाज़ार आम जनजीवन पर हावी हो गया है।इसमे देखा जाए तो इसका सबसे ज्यादा प्रभाव मध्य वर्ग पर देखने को मिलता है।जो लोग अपनी झूठी शान के लिए मात्र दिखावा करते है क्योंकि समाज मे रहने के कारण ऐसा करना उनकी मजबूरी भी है।
            अब अगर हम बात करे कि यह मध्य वर्ग पर ही किस प्रकार हावी है तो मैं बताऊ की हमे अपनी दिनचर्या में ये देखने को मिलता है कि जब भी हम किसी बाज़ार में कुछ लेने जाते है तो हम देखते है कि जो भी पूँजीपति अथवा उच्च वर्ग के लोग हैं उसे तुरन्त खरीदने के लिए सक्षम हैं किन्तु वहीं अगर  मध्य वर्ग का कोई है तो वह सोंचता है कि इसे खरीदे की नहीं और वह जब अपनी अन्य इच्छाओं को ताक पर रखकर उसे खरीदने का मन बनाता है तो उसके पास इसके लिए उतना धन नहीं होता तथा वह सोंचता है कि इसे बाद में ले लेंगे और वह बाद में उतना धन ले कर पहुँचता भी है तो बाजार में कुछ नया ही नजारा होता है और इस प्रकार जिस सामान को खरीदने का मन बनाकर वह जाता है या तो वह सामान नहीं मिलता या उसका मूल्य बढ़ चुका होता है वहां पर हम अपनी इच्छाओं को मारकर अपने को बाज़ार के अनुसार ढालने की कोशिश करते हैं यहां पर प्रेमचंद जी की वह पंक्ति बिल्कुल ठीक बैठती है जो उन्होंने अपनी कहानी ईदगाह में एक बच्चे मोहसीन के माध्यम से बताया है कि, जब वह महमूद से कहता है, "इतनी मिठाईयां कौन खाता है ? देखो न, एक-एक दुकान पर मनों होंगी। सुना है, रात को जिन्नात आकर खरीद ले जाते हैं।"
          असल में देखा जाए तो वो जिन्नात कोई और नहीं पूँजीवादी वर्ग ही है क्योंकि बाजार पर मूल रूप से उच्च वर्ग का ही कब्जा है वहीं अगर बात निम्न वर्ग की करें तो उनके लिए तो यह मात्र सपना ही है।
          वर्तमान में अगर देखा जाए तो यह बात सत्य है क्योंकि आज के समय में बाज़ार आम जनजीवन पर हावी हो गया है जो कि पहले ऐसा नहीं था क्योंकि पहले लोग घर से सोच के ही जाते थे कि खरीदना क्या है और वही सामान खरीद कर लाते थे किंतु आज व्यक्ति सोचकर कुछ और जाता है तथा उसको बाजार में जाकर उसे बाजार के अनुसार अपने को डालना पड़ता है क्योंकि बाजार में वह जो सोच कर जाता है या तो उसको वह सामान मिलता नहीं है या उसका मूल्य अधिक होता है जिसे वह खरीदने में अक्षम है।
       इसको अगर हम अपने जीवन से भी जोड़ें तो हमें देखने को मिलता है कि अगर हमने कोई मोबाइल फोन लिया है तो कुछ ही दिनों में नया मोबाइल फोन बाजार में आ जाता है और हम सोचने लगते हैं की नया वाला कब लिया जाए इस प्रकार से हम देखें तो बाज़ार आम जनजीवन पर हावी होता जा रहा है

Thursday, July 26, 2018

नवनिर्माण की ओर अग्रसर भारत एवं स्वच्छता अभियान


नवनिर्माण की ओर अग्रसर भारत एवं स्वच्छता अभियान ये दो विषय होते हुए भी एक दूसरे से मिलते जुलते है।अगर मैं बात नवनिर्माण की ओर अग्रसर भारत की करुं तो ध्यान में आता है कि :-
      सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः,                          सर्वे भद्राणिपश्यन्तु मा कश्चिद् दुःख भाग्भवेत्।
                 ऊँ शांतिः शांतिः शांतिः
(अर्थ :-"सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी मंगलमय घटनाओं के साक्षी बनें और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े।")
       इससे यह तो ठीक तरह से समझ मे आता है कि हमारा देश स्वान्तः सुखाय की कामना करने वाला देश नहीं है हमारा देश तो सभी को सुखी देखना चाहता है सबको साथ लेकर विकास के रथ पर चलने वाला देश है।
       हमारे देश में तो ईर्ष्या-द्वेष, कुंठा का स्थान ही नहीं था किंतु तथाकथित विकास के ठेकेदार देश को पाश्चात्य संस्कृति की ओर अग्ररसर कर रहेे हैं जहां ईर्ष्या-द्वेष,कुंठा,नग्न चित्रण व चाटुकारिता आदि का भरमार है।
        जो कि हमारे देश की संस्कृति को खोखला कर रही है किंतु उन तथाकथित विकास के ठेकेदारों को यह नहीं मालूम की भारतीय संस्कृति की नींव इतनी भी कमज़ोर नहीं की इन हल्की हवाओ से डगमगा सके।
       इसको हम स्वच्छता अभियान से जोड़े तो देखते है कि हमारे देश की स्वतंत्रता की लड़ाई में अग्रणी भूमिका निभाने वाली बापू (मोहनदास करमचंद गांधी)का यह सपना था कि एक ऐसे भारत का निर्माण हो जो सभी क्षेत्रों में स्वच्छ एवं सुंदर हो।
       जिसको पूरा करने के लिए विभिन्न सरकारों ने अलग-अलग कार्यक्रमों का शुभारम्भ किया जिनमे से एक "निर्मला योजना" प्रसिद्ध है।
       इसके बाद 2 अक्टूबर 2014 को भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने स्वच्छता अभियान की शुरुआत की तथा सवा सौ करोड़ देशवासियों के साथ यह लक्ष्य निर्धारित किया कि 2 अक्टूबर 2019 को बापू की 150वीं जयंती पर भारत पूर्ण रूप से स्वच्छ और सुंदर हो।
        अगर मैं विषय की गहराई में जाता हूं तो याद आता है कि मेरे दादा जी कहा करते थे कि उनके समय जब बारिश होती थी तो वह उस पानी को जमा करके उसको घर के काम में उपयोग करते थे यहां तक की उसमें चावल तक पका लेते थे, किंतु आज के आधुनिकरण के युग में अम्लीय वर्षा का जन्म हो चुका है जो पर्यावरण तथा मानव शरीर के लिए हानिकारक है इससे हमें ज्ञात होता है कि प्रदूषण की मात्रा कितने अधिक बढ़ चुकी है।
        जिसको दूर करने के लिए ही स्वच्छता अभियान की शुरुआत की गई इसका परिणाम हमें साक्ष्य के रूप में देखने को मिलता है जिसमें सभी लोगों ने मिलजुलकर स्वच्छ भारत के लिए कदम उठाया।
        यहां तक की इससे समाज की मानसिकता पर भी प्रभाव पड़ा है जो कि विभिन्न प्रयासों से भी संभव न था क्योंकि हमारी मानसिकता बन चुकी थी की अगर हम सफाई करते हुए व्यक्ति को देखते थे तो उसे भंगी कहकर पुकारते थे किंतु आज के समय में उसे सफाई कर्मचारी कहा जा रहा है तथा कोई भी सफाई करने में शर्म महसूस नहीं करता जिसके कारण सफाई की जिम्मेदारी एक निश्चित वर्ग की ना होकर सबकी हो गई है।
      स्वच्छ भारत अभियान को स्वास्थ्य से भी जोड़ा गया क्योंकि जहां हर 2 मिनट में एक बच्चा डायरिया के कारण दम तोड़ता था, स्कूलों में शौचालय मैं गंदगी थी तथा प्रत्येक 4 में से 1लड़की इसलिए पढ़ाई छोड़ देती थी क्योंकि स्कूलों में शौचालय की व्यवस्था नहीं थी इस समस्या को दूर करने में स्वच्छता अभियान ने बड़ी भूमिका निभाई है।
       यहां तक कि 21वीं सदी में भी भारत के अंदर लगभग 80 करोड़ परिवार ऐसे हैं जिनके घरों में शौच की व्यवस्था नहीं थी किंतु स्वच्छता अभियान में सरकारी कोष के माध्यम से इसे दूर करने का कार्य प्रयासरत है एवं सड़कों पर भी सरकार के द्वारा शौचालयों का निर्माण कराया जा रहा है जिससे गंदगी न फैले जिससे बीमारियों एवं मरीजों की संख्या में कमी आये।
       विभिन्न संगठन इस कार्य को करने में प्रयासरत है कि स्वच्छता को व्यक्ति अपनी जीवनशैली में उतारे इसके लिए हम सभी प्रयासरत हैं।
       अंत में हरिवंश राय बच्चन जी की पंक्तियां समर्पित :-
       असफलता एक चुनौती है,
       इसे स्वीकार करो, 
       क्या कमी रह गई,
       देखो और सुधार करो।
       जब तक सफल ना हो,
       नींद चैन को त्यागो तुम,
       संघर्ष का मैदान, 
       छोड़ मत भागो तुम,
      कुछ किए बिना जय जयकार नहीं होती,
      कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।।

आग्रह:-अगर आप चाहते हैं कि इस विषय की 
            जानकारी आपके दोस्तों तक भी पहुँचे तो                    Link दोस्तों को जरूर भेजें तथा आगे आप                  किस विषय की जानकारी चाहते हैं                                Comment में जरूर लिखें।

बाज़ारवाद आम जन-जीवन पर हावी

            वर्तमान समय में देखें तो बाज़ार आम जनजीवन पर हावी हो गया है।इसमे देखा जाए तो इसका सबसे ज्यादा प्रभाव मध्य वर्ग पर देखने को मि...